शिक्षा






उद्देश्य
प्रशिक्षण कार्यक्रमों और प्रदर्शनों के माध्यम से हमारे कार्य क्षेत्र में एकीकृत बाल विकास सेवा केंद्रों का समर्थन और सुदृढ़ीकरण। विभिन्न क्षेत्रों में मॉडल बाल विकास केंद्र स्थापित करने और चलाने और इसी तरह के इच्छुक ग्रामीण सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के साथ हमारे प्रयोगों के परिणामों को साझा करने की कोशिश की गई।
सेक्टर में चुनौतियां
आईसीडीएस (इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस सेंटर) ने भारत में कुछ महत्वपूर्ण काम किया है। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में, सभी बच्चों (पटनायक, 1996) के मानसिक और सामाजिक विकास में एक निश्चित स्तर का सुधार देखा गया था। बेहतर टीकाकरण और पोषण के साथ भारतीय बच्चों के जन्म-वजन और शिशु मृत्यु दर में भी काफी सकारात्मक बदलाव आया । तथापि, इसके साथ ही विश्व बैंक ने इस कार्यक्रम की कुछ कमियां बताई हैं जिनमें गरीब बच्चों से अधिक धनी बच्चों की भागीदारी और भारत के सबसे गरीब राज्यों (पटनायक, १९९६) के लिए वित्तपोषण का निम्नतम स्तर शामिल है । अध्ययनों से पता चला है कि सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां शायद ही कभी इन संस्थानों में पाई जाती हैं । कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की कमी और रिकॉर्ड और रजिस्टरों के रखरखाव के कारण असंतोषजनक प्रदर्शन हुए हैं । अध्ययनों में बच्चों का अव्यवस्थित विकासात्मक मूल्यांकन और गतिविधियों का कोई कठोर मूल्यांकन नहीं पाया गया है, जिससे बच्चों में न्यूनतम वृद्धि हुई है । चूंकि हर ए डब्ल्यू सी (आंगनबाड़ी केंद्र) में आवश्यक शिक्षकों (सेविकाओं) की संख्या का अभाव है, इसलिए मानक छात्र शिक्षक अनुपात को बनाए रखना मुश्किल है। साथ ही एडब्ल्यूसी के सीवेज में भी सही तरीके से प्रशिक्षित नहीं हैं। शिक्षण अधिगम सामग्री (टीएलएम) की कमी है और यदि उपलब्ध है, तो उनका कम उपयोग, अपर्याप्त और अनुचित है। इमारतें भी जर्जर स्थिति में हैं, जहां रोशनी नहीं है; वेंटिलेशन; इनडोर और आउटडोर गतिविधियों के लिए जगह; सुरक्षा; बिजली; खाना पकाने की जगह; भंडारण; शौचालय, स्वच्छ और स्वच्छ पेयजल।
कार्यक्रम विवरण –
परिवर्तन के बालघर आंगन को पूर्व-प्राथमिक शिक्षा मॉडल के आधार पर 3-6 वर्ष के बच्चों के आयु वर्ग के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह कार्यक्रम 8 पंचायतों के आंगनबाड़ी केंद्रों (एडब्ल्यूसी) के साथ चलता है जो हमारे करीबी एवं आसपास हैं। बालघर आँगन का उद्देश्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों और प्रदर्शनों के माध्यम से हमारे कार्य क्षेत्र में आईसीडीएस केंद्रों का सहयोग और सुदृढ़ीकरण करना है। यह कार्यक्रम निम्नलिखित स्तरों पर प्रभाव पैदा करना चाहता है:
बालघर आंगन प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव शैक्षणिक ढांचे की शुरुआत करके बच्चों के सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास को प्राप्त करना चाहता है । हम एडब्ल्यूसी में सीखने का माहौल बनाकर बच्चों के सहकर्मी विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं। आईसीडीएस केंद्र: बालघर आंगन कई तरीकों से उनका सहयोग करके अपने कार्य क्षेत्र में आईसीडीएस केंद्रों को विकसित करने की आकांक्षा रखता है। यह कार्यक्रम एडब्ल्यूसी की संस्कृति और प्रदर्शन को आकार देने की समझ के साथ सेविकाओं को भी सशक्त बनाता है ।
समुदाय: माता-पिता, दादा-दादी और अन्य समुदाय के सदस्य कार्यक्रमों और कार्यशालाओं में भाग लेते हैं जहां उन्हें बालघर आंगन में अपनी यात्रा के दौरान अपने बच्चों की प्रगति के बारे में अवगत कराया जाता है और उन्हें परिवर्तन के अन्य कार्यक्रमों के साथ जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ।
बालघर आंगन एक द्विवार्षिक समाचार पत्र भी जारी करता है, ‘हमार अंगना जो परिवर्तन से जुड़े बच्चों और सेविकाओं के अनुभवों को सँजोता है।
पाठ्यक्रम (यदि उपलब्ध है): बाल घर आंगन ने 8 महीने के लिए एक विषय आधारित पाठ्यक्रम विकसित किया है। पाठ्यक्रम प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के क्षेत्र में सबसे हाल के विचारों और विकास के साथ बच्चों का पोषण करना चाहता है । त्योहारों, मौसमों, प्रकृति और भारत जैसे विषयों के आधार पर हम गतिविधि आधारित सीखने के माध्यम से बच्चों का पोषण करना चाहते हैं । हम कविताओं, कहानियों और नाटक गीतों के माध्यम से बच्चों के संज्ञानात्मक कौशल को बढ़ाने की ख्वाहिश रखते हैं। बाल घर आंगन ने बच्चों में शारीरिक विकास को पोषित करने के लिए अपना पाठ्यक्रम भी विकसित किया है ।
कार्यशालाएँ:
परिवर्तन में सामुदायिक यात्राओं और कक्षाओं के अलावा, हम परिवर्तन और सामुदायिक स्तर पर विभिन्न कार्यशालाओं और कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं। नन्हे कदम जैसी कार्यशालाएं, माता-पिता और अन्य समुदाय के सदस्यों के साथ जुड़ने का प्रयास करती हैं । कर्मशाला जैसे अभिनव शैक्षिक अभ्यासों और उत्साही कार्यक्रमों के माध्यम से, प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा के महत्व पर जागरूकता बढ़ रही है और समुदाय भी प्रेरित हो रहा है ।
सहयोग:
बालघर आंगन शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अग्रणी संगठनों जैसे जोड़ो ज्ञान और प्रथम से विभिन्न शिक्षण अधिगम सामग्री (टीएलएम) का उपयोग करता है जो बच्चों में सभी कौशलों के विकास की जरूरत को पूरा करता है। बच्चों को बातचीत करने और सीखने का मौका भी दिया जाता है।
केस स्टोरी
नाम – सुशांत सिंह
पिता का नाम – अनिल सिंह
उम्र – 4 वर्ष
ग्राम – नरेन्द्रपुर
जब सुशांत पहली बार बालघर आँगन में क्लास के लिए अपनी फुआ के साथ आया, वह पहली बार घर से बाहर निकला था और ज्यादा बच्चों के साथ रहने की आदत भी नहीं थी । इसलिए वह बच्चों के बीच बैठ नहीं रहा था, बार-बार दरवाजा खोलकर अपनी फुआ को आवाज लगा रहा था । मैं बार-बार उसको बैठने कह रही थी परन्तु लगता था कि वह मेरी बात सुन ही नहीं रहा है। जब क्लास समाप्त होनेवाला था तब मैं सारे बच्चों से कहा कि तुम सब चार-चार का ग्रुप बना लो । तब सारे बच्चे ग्रुप बना के खेलने लगे। सुशांत एक जगह पर खड़ा ही रहा। तब मैं उसे बोली कि तुम भी इस ग्रुप में बैठ जाओ पर वह सुना नहीं और चुपचाप खड़ा ही रहा । मैं फिर उससे बोली सुशांत तुम भी इन बच्चों के साथ बैठ जाओ तब वह तोतला कर बोला मैं इन बच्चो के साथ नहीं खेलूँगा । फिर मैं उसे ब्लाक्स दी वह ब्लाक्स से रेलगाड़ी बनाकर खेलने लगा । मैं वही बैठ गई और पूछा कि क्या बना रहो हो तब वह बोला मेरी बुआ मुझको गुड बाबु नहीं बोलती है, केवल बाबु को हर सामान खरीद के देती है । मैं उसके सर पर हाथ रख कर बोली कि तुम बहुत अच्छे बाबु हो मैं तुम्हारे बुआ से बोलूँगी कि सुशांत गुड बाबु है- बोला ठीक है। छुट्टी का समय हो गया था सभी बच्चे गेट पर चले गए परन्तु सुशांत अपनी बुआ को ही आवाज़ लगा रहा था और मुझसे बोला मेरी छोटी बुआ को बुलाओ । कुछ समय बाद उसकी छोटी बुआ उसे लेने के लिए आ गई और मुझसे पूछी कि मैडम जी सुशांत बदमाशी तो नहीं किया था।मैं उसकी बुआ से बोली कि आप सुशांत को आज के बाद बदमाश मत बोलना सुशांत अच्छा बच्चा है ।
अगले दिन सुशांत अपनी बुआ के साथ आया वह क्लास में बच्चों की सभी गतिविधियाँ देख रहा था पर वह कुछ कर नहीं रहा था, इसी तरह उसकी बुआ रोज गेट पर उसे छोड़ देती थी और शाम को गेट से ले जातीथी । इस तरह सुशांत रोज-रोज आने लगा सुशांत को बालघर के बच्चे भी बहुत चाहने लगे, जिस दिन सुशांत बालघर नहीं आता था बच्चे पूछने लगते थे कि मैडम जी आज सुशांत क्यों नहीं आया । इस तरह सुशांत बालघर का नियमित छात्र बन गया एवं सभी बच्चों में घुल मिल गया ।
कार्य का उद्देश्य-
भाषा कौशल, संचार, अभिव्यक्ति, रचनात्मक और नेतृत्व कौशल प्राप्त करने में बच्चों का समर्थन करना, निरंतर समन्वय और समर्थन के माध्यम से क्षेत्र के अन्य स्कूलों के साथ इन प्रयासों को साझा करना।
इस क्षेत्र की चुनौतियाँ: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार, जो मूलभूत संख्या और साक्षरता के मामले में पिछड़ जाते हैं, वे भविष्य में सीखने की चुनौतियों का सामना करते हैं तथा हमेशा के लिए इसमें पिछड़ जाते हैं। आखिरकार वे स्कूल में उपस्थित नहीं होते और यहाँ तक कि पूरी तरह से स्कूल छोड़ने का मुख्य करण यही बन जाता है। (ASER) एनुअल सर्वे ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2019 में, ग्रामीण क्षेत्रों से उजागर किए गए प्रमुख निष्कर्षों में एक यह है कि भारत के कई राज्यों में बच्चों के पढ़ने और अंकगणित सीखने की स्थिति में काफी वृद्दि हुई है। शुरूआती वर्षो में स्कूली शिक्षा में साक्षरता और संख्यात्मकता पर बहुत कम जोर दिया जाता है और सामान्य तौर पर, भाषाओं के पढ़ने, लिखने, बोलने और सामान्य सोच पर जोर दिया जाता है। वास्तव में प्रारम्भिक कक्षाओं में पाठयक्रम बहुत तेजी से रटने, सीखने और यांत्रिक शैक्षणिक कौशल की ओर बढ़ता है जबकि मूलभूत सामग्री के माध्यम से कल्पना करने, खोजने और सीखने को बहुत कम अवसर दिया जाता है।
कार्यक्रम का विवरण:
भाषा और शिल्प आधारित शिक्षा पर जोर देने के लिए परिवर्तन स्थित बालघर किसलय को डिजाइन किया गया है, जो बच्चे की नींव को मजबूत कर सकता है। हम अंदेर और जीरादेई प्रखंड के स्थानीय सरकारी स्कूलों के इन प्रयासों में शामिल हुए हैं। बालघर किसलय में भाषा, रचनात्मक क्षमता और बच्चों के विश्लेषणात्मक कौशल को मजबूत करने की कल्पना की गई है, जो लंबे समय तक उनकी मदद कर सकती है। कार्यक्रम का उद्देश्य तीन अलग-अलग स्तरों पर प्रभाव उत्पन्न करना है। बालगृह किसलय बच्चों में भाषाई कौशल, रचनात्मकता एवं अभिनव विश्लेषणात्मक कौशल विकास हेतु प्रतिबद्ध है ।इन कौशलों को हम शैक्षणिक ढाँचे के रूप में प्राप्त करना चाहते हैं जिससे भाषा, संचार, अभिव्यक्ति, रचनात्मकता और नेतृत्व कौशल को बढ़ावा मिले। हमें सीखने के माहौल का निर्माण बच्चों के &सहपाठियों से सहपाठियों के विकास & द्वारा करते हैं ।समन्वय और समर्थन के माध्यम से क्षेत्र के अन्य स्कूलों के साथ सीखने को साझा करने के लिए भी काम करते हैं। स्कूल -बालगृह किसलय प्राथमिक स्कूलों के छात्रों के पोषण व विकास हेतु संकल्पित है ।नियमित यात्राओं और कार्यशालाओं के माध्यम से हम बच्चों और शिक्षकों को स्वतंत्र रूप से विचारों को अभिव्यक्त करने तथा संवाद साझा करने का अवसर प्रदान करते हैं।
समुदाय: जैसा कि कार्यक्रम सहपाठियों द्वारा आपस में सीखने पर आधारित है, बालगृह किसलय से जुड़े बच्चे अक्सर अपने समुदाय में सदस्यों को प्रभावित करते हैं। पारदर्शी कार्यक्रम की संरचना बनाने के लिए, माता-पिता, दादा-दादी और अन्य समुदाय के सदस्यों को कार्यक्रम और कार्यशालाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। बालघर किसलय में अपनी यात्रा के दौरान उन्हें अपने बच्चों की प्रगति से भी अवगत कराया जाता है।
कार्यशालाएँ: परिवर्तन और सामुदायिक स्तर पर हम विभिन्न कार्यशालाओं और कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं। खेल-खेल में कार्यशाला, संगीत आधारित कार्यक्रम, पेंटिंग, रचनात्मक कार्यक्रम लेखन और कविता जैसे विभिन्न गतिविधियों का आयोजन करके हम प्रतिभा प्रदर्शन के विभिन्न स्तरों को एक साथ लाने का प्रयास करते हैं। ये सभी कार्यशालाएँ बच्चों को विभिन्न स्तरों पर सोचने में सक्ष्म बनाती है।
शैक्षिक नवाचार सिखे, सिखाएँ कार्यशाला, वाचन और लेखन आधारित कार्यशालाओं के माध्यम से बालगृह किसलय का उद्देश्य बच्चों में आपसी शिक्षण को बढ़ावा देना है। इन कार्यशालाओं के संचालन के लिए हमें विभिन्न विशेषज्ञो का सहयोग मिलता है। प्रसिद्ध लेखिका सुश्री वंदना राग ने अपने कुशल मार्गदर्शन से छात्रों को कथा लेखन हेतु प्रेरित किया। छात्रों के पठन एवं लेखन हेतु प्रेरित किया। छात्रों को पठन एवं लेखन का यह उत्कृष्ट परिणाम हुआ कि ‘किस्से लबालब’ नामक दिलचस्प कहानियों की एक किताब सामने आई। बालगृह किसलय एक त्रैमासिक सामाचार पत्र ‘चहकने की ललकְ’ भी प्रकाशित करता है जो कविताओं, चित्रों, चुटकुलों, पहेलियों और निबंधो के माध्यम से बच्चों के विचारों को नवीन आयाम देता है।
केस स्टोरी
नाम – रौशन
घर – भवराजपुर
कक्षा -5
पंचायत- भवराजपुर
उम्र -10 साल
शुरु में जब रौशन पढ़ने के लिए बालघर किसलय में आता था तो बहुत कम बोलता था और पढ़ने में भी काफी कमजोर था। वह स्पष्ट रूप से बोल नहीं पता था, और सबसे पीछे बैठता था। मैं रोज़ उसे आगे बैठने के लिए बोलती थी। वह आगे कुछ देर तक बैठता था फिर वह पीछे जा कर बैठ जाता था। एक दिन मैं बालगीत करा रही थी|सभी बच्चे गोलाकार में खड़े होकर बालगीत को एक्शन में कर रहे थे, रौशन भी बालगीत को केवल ध्यान से सुन रहा था और एक्शन कम कर रहा था| दूसरे सप्ताह जब वह क्लास करने के लिए आया तब मैं सभी बच्चों से बालगीत सुनाने को बोली तो सबसे पहले रौशन हाथ खड़ा किया और बालगीत भरपूर एक्शन में सुनाया, और बच्चों को भी एक्शन बता रहा था| दिन प्रति दिन वह सभी बच्चों से काफी सक्रिय होकर कविता-कहानी में रूचि लेने लगा और वह शाम के समय रोज परिवर्तन आने लगा। वह काफी कुछ सीखना चाहता था, कुछ दिन बाद ‘चहकने की ललक’ में उसकी कहानी भी छपी, फिर ‘चकमक’ पत्रिका में मेरा पन्ना में भी उसकी कहानी छपी। मैं उसके घर जाकर चकमक पत्रिका के बारे में बताई और रौशन से मिलकर बातचीत भी की। उसके बाद वहाँ के सभी बच्चे ‘परिवर्तन’ शाम के समय क्लास के लिए रौशन के साथ आने लगे। रौशन अब तेज एवं काफी समझदार हो गया है । अभी वह परिवर्तन आता है और परिवर्तन में आकर पुस्तकालय, झरोखा, एवं घरौदा से जुड़ रहा है। अब वह कही प्राईवेट स्कूल में पढता है। उनके अभिभावक से मेरी कभी-कभी बातचीत होती है जब हम समुदाय विजिट एवं क्लास के लिए जाते हैं।
कार्य का उद्देश्य :
कंप्यूटर के उपयोग द्वारा बच्चों में गुणवत्तापूर्ण भाषा कौशल विकसित करना। क्षेत्र की चुनौतियाँ : शिक्षा सर्वेक्षण की वार्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट (एएसईआर, 2016) और नेशनल अचीवमेंट
स्टडी (एनएएस, 2017) के अनुसार, भारत के उत्कृष्ट राज्यों की तुलना में अविकसित राज्यों में सीखने के परिणाम बेहतर है। अध्ययनों से पता चलता है कि इस गति से बच्चों को बुनियादी भाषा कौशल में महारत हासिल करने में 18.7 साल लगेंगे।
कार्यक्रम का विवरण: मिश्रित शिक्षा द्वारा समर्थित ई-लर्निग शिक्षाशास्त्र का उपयोग करके भाषा दक्षता विकसित करने के लिए ‘झरोखा’ का निर्माण किया गया है। कुशल प्रशिक्षक के नेतृत्व में प्रशिक्षण (ILT) और कंप्यूटर -असिस्टेड भाषा सीखने (CALL) का अवसर यहां उपलब्ध है। भाषाओं को सीखने के लिए बच्चों को पहले माउस और कीबोर्ड के साथ काम करना सीखना चाहिए और इस तरह बुनियादी कंप्यूटर तकनीक से परिचित कराना चाहिए। 9-12 वर्ष की आयु के बच्चे ऑनलाइन सॉफ्टवेयर ‘डुओलिंगो‘ के माध्यम से हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में अभ्यास कार्य करते हैं। वे नए शब्द सीखते हैं, अपनी शब्दावली को समृद्ध करते हैं और अनुवाद तकनीक से परिचित होते हैं । यह 6 महीने का कार्यक्रम है और बच्चों के चार अलग-अलग समूह हर दिन परिवर्तन में कंप्यूटर का प्रशिक्षण रुचि से पाते हैं।
पाठ्यक्रम (यदि उपलब्ध हो):
झरोखा का पाठयक्रम एक ऑनलाइन डुओलिंगो पर आधारित पाठयक्रम है, जिसका उद्देश्य किसी भी भाषा में बच्चों की समझ को बढ़ाना है। झरोखा में, हम हिंदी और अंग्रेजी पर
ध्यान केंद्रित करते हैं। यह एक 6 महीने का पाठ्यक्रम है जो कंप्यूटर के साथ-साथ भाषा की मूल बातें भी बताता है। हमारे प्रशिक्षक श्री बृजेश ने छात्रों के लिए ऐसे कार्य और गतिविधियाँ तैयार की है जिनका उद्देश्य भाषा की समझ को बेहतर बनाना है। छह महीने के बाद छात्रों की जाँच परीक्षा होती है जिससे उनके सीखने के स्तर का आकलन किया जाता है। इस परीक्षा के सफल समापन पर, छात्रों को परिवर्तन परिसर में प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाता है।
सहयोग: गर्ल्स हू कोड झरोखा ने ‘गर्ल्स हू कोड’ के साथ भी कार्यक्रम साझा किया है। यह एक ऐसी संस्था है जिसका लक्ष्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लैंगिक अंतर को समाप्त करना है। उनके सहयोग से झरोखा ने समुदाय से 14 लड़कियों की संगति के साथ एक ‘गर्ल्स हू कोड’ क्लब की स्थापना की है। SCRATCH एक मुफ्त ऑनलाइन प्रोग्राम है जो भाषा के उपयोग पर केंद्रित है। छात्रों को रोचक और मनोरंजक कहानियों खेल और एनिमेशन विकसित करने में यह मदद कर सकता है।
केस स्टोरी
राहुल की कहानी उसके शिक्षक की जुबानी ……………….
परिवर्तन शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीण बच्चों के उत्थान के लिए लगातार प्रयासरत है | इसी कड़ी में आइये मिलते हैं राहुल से जो परिवर्तन के द्वारा संचालित ‘झरोखा’ में पिछले 3 सालों से जुड़ा है। ग्राम बाबु के भटकन प्रखंड जिरादेई, जिला सिवान का राहुल एक निम्न वर्गीय परिवार से आता है तथा कक्षा 5 में पढता है । उसके घर में उसके अलावा उसके दादा जी,दादी जी,माता-पिता बड़ा भाई एंव उसकी छोटी बहन है । उसके पिता जी बाहर मजदूर का काम करते हैं । घर पर उसके दादा जी खेती-बाड़ी का काम करते हैं एवं घर का देखभाल भी उन्ही के जिम्में है।
राहुल के बारे में कुछ लिखने का ख्याल अनायास हीं नहीं आया । उसकी कुछ बातें तथा कक्षा के अंदर की गतिविधि सहसा ही किसी का ध्यान उसकी ओर खिंच लेता है । ऐसा उसके परिवर्तन में आते हीं नहीं हुआ। राहुल बिल्कुल शर्मिला लड़का था । जब वह बातें करता तो कभी भी वह नजर से नजर मिलाकर बात नहीं करता था । वह कपडे भी सही तरीके से नहीं पहनता था । पहली नजर में कोई भी व्यक्ति जब उसे उस समय देखता तो उसके मन में उसके प्रति नकारात्मक विचार ही आते । राहुल जब परिवर्तन के झरोखा (कम्पूटर के माध्यम से अंग्रेजी भाषा सिखाने का काम करती है झरोखा) क्लास में आना शुरू किया तो उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता था, लेकिन जैसे-जैसे उसने झरोखा क्लास में समय बिताया एवं
परिवर्तन द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों को पालन किया, उसकी बात करने के तरीके में बदलाव आया। अब वह खूब मन लगाकर अपनी कक्षा में पढाई करने लगा। राहुल के पास कुछ ऐसे गुण हैं जिसके कारण वह सबके लिए प्रिय है। वह अपने आप में बहुत ही ईमानदार और अपने काम के प्रति समर्पित है। उसकी कुछ बातों का जिक्र करना परिवर्तन ज़रुरी समझाता है जो उसके बारे में बहुत कुछ बताती हैं। उसी के साथ उसके गाँव के बच्चे भी पढ़ने आते हैं। उसके साथ का कोई भी बच्चा किसी तरह की शरारत करता है तो वह उपस्थित शिक्षक से आकर ज़रुर बताता है । इससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि वह आस-पास के माहौल को भी बनाए रखना चाहता है। उसके स्कूल में जब कोई जाँच परीक्षा होती है तो परिवर्तन आकर उसके
बारे में ज़रुर बताता है | विशेषकर वे बातें जो उसे परेशान करती है जैसे कोई प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाता तो हमारी संस्था में आकर जरुर कहता है कि सर मुझे आज कुछ प्रश्न के उत्तर नहीं आ रहे थे । यह बात कहते हुए उसके चेहरे पर पश्चाताप का भाव झलकता है। वह अपनी पढाई के प्रति इतना जागरूक हो गया है कि इसकी राह में बन रही हरेक तरह के रूकावट से उबरने के लिए परिवर्तन के शिक्षकों से जरुरी सलाह लेते रहता है। इन्हीं सब बातों के कारण वह परिवर्तन का चहेता है। सभी उससे स्नेह रखते हैं। राहुल ‘झरोखा’ का पाठ्यक्रम अपने समूह में सबसे पहले पूरा करने लगा । अगर उसके किसी साथी को कोई शब्द या वाक्य समझ में नहीं आता तो वह झट से जाकर उसे बता देता है। अब वह कंप्यूटर आसानी से चला लेता है तथा किसी दूसरे बच्चे को अगर कुछ समझ में ना आए तो उसे वह बताता भी है । सच में राहुल को देखकर ऐसा लगता है की गाँव के बच्चों में इतना बदलाव भी हो सकता है क्योंकि गाँव का
परिवेश इस तरह के बदलाव के लिए बिलकुल भी अनुकूल नहीं होता।
कार्य का उद्देश्य :
संज्ञानात्मक कौशल विकसित करना कला और शिल्प विशेष रूप से पेंटिंग और ड्राइंग के माध्यम से बच्चों में रचनात्मकता को बढ़ावा देना इस तरह के अभ्यास के माध्यम से नवीन शिक्षण
तकनीकों और भाषा कौशल का विकास करना।
क्षेत्र की चुनौतियाँ:
कला शिक्षा की वर्तमान स्थिति स्कूलों में समाप्त सी हो गई है। इसका प्रमुख कारण पारंपरिक शिक्षण पद्धतियों पर अधिक ध्यान देना, पठित विषयों में परिक्षण और परीक्षा सहित पूरे वर्ष के
मूल्यांकन की एक औपचारिक प्रक्रिया है। ललित कला, संगीत या नृत्य जैसे विषय इन परीक्षा की संरचना में अनुकूल नहीं होते है। इस क्रमिक गिरावट का एक अन्य कारण कला शिक्षको की कमी भी है। कला गतिविधि आधारित विषय है, जो शिक्षकों की भागीदारी को महत्वपूर्ण बनाता है। कार्यक्रम का विवरण: कला के लिए सामान्य धारणा है और लोगो का मानना भी है कि यह एक व्यर्थ प्रयोग है। ‘घरौंदा’ इस धारणा को बदलने और हमारे रोजमर्रा के जीवन में कला के महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा करने की इच्छा रखता है। यह समुदाय स्कूली बच्चों के बीच कला में रूचि पैदा करना चाहता है। ‘घरौंदा’ बच्चों को अपने सृजनात्मक कौशल और रचनात्मक अभिव्यक्तियों को विकसित करने के उद्देश्य से विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है।
पाठयक्रम (यदि उपलब्ध हो):
‘घरौंदा’ का उद्देश्य विभिन्न वर्गो में रचनात्मक और कलात्मक कौशल विकसित करना है। हम अलग-अलग आयु समूहों के लिए इन कौशल को पूरा करते हैं और विभिन्न पाठयक्रम को विकसित और डिजाइन करते हैं। प्राथमिक, मध्य और उच्च विद्यालय के बच्चे इन कक्षाओं में भाग लेते हैं और इसे परिवर्तन तथा समुदाय दोनों में आयोजित किये जाते हैं। कक्षाएं 6 महीने के
पाठयक्रम पर आधारित होती है जो कला और शिल्प की विभिन्न शैलियों के माध्यम से छात्रों की रचनात्मकता और बढ़ाने पर केद्रित होती है। इन कक्षाओं के माध्यम से छात्रो को अपनी रचनात्मक क्षमता व्यक्त करने का अवसर दिया जाता है।
किशोरी क्लासेज विशेष रूप से किशोर लड़कियों को जाग्रत और उन्मुख करने के उद्देश्य से शुरू किया गया कार्यक्रम है। ये कक्षाएँ रोजगारपरक कौशल प्रदान करती हैं और किशोरियों के लिए आत्मनिर्भर व आजीविका हेतु सफल मंच साबित हो सकते है। 6 महीने के पाठयक्रम के आधार पर, मधुबनी पेंटिंग, बेड-सीट पेंटिग, बोर्ड- पेंटिंग, मेहंदी डिजाइन और रंगोली बनाना इन कक्षाओं के माध्यम से सिखाया जाता है।
ये कौशल हमारे दैनिक जीवन को उपयोगी और समृद्ध बनाते है। वर्कशाप: ‘घरौंदा’ बच्चे को कला की विभिन्न शैलियों और परंपराओं को उजागर करने में विश्वास करता है जो उन्हें उनके दृष्टिकोण का निर्माण करने में मदद कर सकते है। हम छात्रों को विभिन्न कार्यशालाओं और कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते है। कुछ कार्यशालाएं वृषाली जोशी, प्रीति रॉय और
रवि ओझा जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों द्वारा संचालित की जाती है। इसके साथ ही हम टेराकोटा, रंगोली, मधुबनी, ग्लास पेंटिंग, पेपर क्राफ्ट और चित्रण जैसी कला शैलियों पर कार्यशालाओं का आयोजन कर रहे हैं। विभिन्न कला परंपराओं के संपर्क में आने से उन्हें रचनात्मकता की प्रक्रिया में अवलोकन, कल्पना और दृश्य की गुंजाइश मिलती है। हम इन कार्यशालाओं में अपने सहयोगिनी तथा दृश्य को भी शामिल करते है।
सहयोग-
वर्ष 2018 में, हमने बच्चों के लिए दो कला कार्यशालाओं और प्रतियोगिताओं के संचालन के लिए कैमलिन इंडिया के साथ सहयोग किया है।
केस स्टोरी
मुन्नी गोठी गाँव की साधारण और माध्यम वर्ग की लड़की है। जिसका उम्र 12 साल है और यह मध्य विद्यालय गोठी की छात्रा है। मुन्नी को कला के प्रति बचपन से ही रुझान है | मुन्नी को चित्रकला के अलावा संगीत और नृत्य में भी रूचि है । मैं जब भी मध्य विद्यालय गोठी में चित्रकला का क्लास कराने जाता तो मुन्नी सबसे आगे निकल कर आती थी । फिर घरौंदा के सारे कार्यशाला में भी भाग लेने लगी। इसके बाद मुन्नी धीरे धीरे घरौंदा की नियमित छात्रा बन गयी । वह घरौंदा आती और तरह तरह के कलात्मकता का प्रदर्शन करती । मुन्नी की कला को देखकर गोठी गाँव से और भी लड़कियों का जुडाव घरौंदा से होने लगा । मुन्नी के साथ साथ तीन लड़कियां और कला सिखने परिवर्तन आने लगी। फिर अचानक तीन माह बाद मुन्नी और उसकी साथियों का परिवर्तन आना बंद हो गया । मैंने फ़ोन के माध्यम से कारण जानने का प्रयास भी किया पर उसके अभिभावक मेरा फ़ोन भी नहीं उठाते कभी उसका फ़ोन बंद आता तो कभी उसके पिता बोलते मुन्नी की तबियत ख़राब है वह नहीं जाएगी । गर्मी की छुट्टी में परिवर्तन द्वारा आयोजित “हलचल कार्यशाला” में मुन्नी भाग ली थी । यहाँ उसने बहुत मन से काफी सुन्दर सुन्दर पेंटिंग भी बनायीं थी । हलचल कार्यशाला के अंतिम दिन हुए कला प्रदर्शनी में मुन्नी अपनी माँ के साथ आई थी । मुन्नी बड़ी उत्सुकता के साथ अपनी माँ को अपनी पेंटिंग दिखाई फिर घूम घूम कर परिवर्तन के सारे कामों को भी माँ को समझाई । हमें लगा कि अब शायद मुन्नी फिर से घरौंदा नियमित क्लास से जुड़ जाएगी । पर गर्मी छुट्टी के बाद मुन्नी का आना फिर बंद हो गया । मैं मुन्नी को लेकर काफी चिंतित था क्योंकि मुन्नी काफी प्रतिभावान कलाकार है । एक दिन मैं गोठी गाँव मुन्नी के अभिभावक से मिलने गया तो उसके अभिभावक परिवर्तन जाने से साफ़ मना कर दिए । उनका कहना था कि परिवर्तन जाने से मेरी बेटी को कोई लाभ नहीं है । इसलिए मैं परिवर्तन नहीं जाने दूँगा । जितना समय वह परिवर्तन में बर्बाद करेगी उतने में वह घर का काम सिख लेगी जो आगे उसको काम आएगा । मेरे द्वारा बहुत समझाने पर उसके पिता कभी कभी कार्यशाला में भाग लेने का आदेश दिए पर नियमित क्लास के लिए साफ़ मना कर दिए । फिर मुन्नी परिवर्तन द्वारा आयोजित कार्यशाला में भाग लेने लगी । कैमलिन द्वारा आयोजित कला प्रतियोगिता में मुन्नी एक पिंजरे में कैद चिड़िया का चित्र बनायीं और उसमे लिखी की ये मेरी कहानी है । मैं भी इसी चिड़िया की तरह अपने घर के पिंजरे में कैद हूँ । इतनी छोटी सी बच्ची के द्वारा इतना मार्मिक और संदेशपूर्ण विषय देखकर कैमलिन प्रतियोगिता के आये निर्णायकों का ह्रदय भी द्रवित हो गया और उसे प्रथम पुरस्कार से नवाज़ा गया । इसके बाद मुन्नी किसलय द्वारा आयोजित पठन-लेखन कार्यशाला में भी भाग ली, जिसमें वह एक लड़की डॉक्टर की कहानी लिखी जिसमें एक डॉक्टर की क्या-क्या जबाबदेही है यह दर्शायी । उसकी कहानी वंदना मैडम को भी काफी पसंद आया और मुन्नी की कहानी चयन होकर पुस्तक में छपने गयी । इसी तरह इलस्ट्रेशन कार्यशाला में भी मुन्नी की पेंटिंग किताब के लिए चयनित हुआ, फिर एक के बाद एक कई पुरस्कार भी जीती । इसके बाद मैं फिर कई बार मुन्नी के अभिभावक से मिला और मुन्नी की लगातार उपलब्धियों से अवगत कराया । फिर मुन्नी को अपने विद्यालय से बाल पथिक के कार्यक्रम से भी जोड़ा गया । मुन्नी की उपलब्धियों और घरौंदा के नियमित प्रयास से मुन्नी के परिवार की सोच में बदलाव आया है । आज फिर मुन्नी घरौंदा नियमित क्लास और बाल पथिक कार्यक्रम से जुड़ पायी है और बहुत पुरस्कार भी जीती है। चित्रकला के साथ ही साथ नारी जुटान में चित्र के माध्यम से अपनी कहानी और नृत्य भी कर रही है | यह घरौंदा के कार्यों का बहुत बड़ा प्रभाव बनकर सामने आया जब हमने किसी एक परिवार की सोच बदलने में सफलता हासिल की है।
कार्य का उद्देश्य –
बच्चों के बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना, क्षेत्र के विभिन्न विद्यालयों के साथ सुगमतापूर्वक विज्ञान संबंधी भ्रमों को दूर करना तथा जिज्ञासा की भावना तीव्र करना। शिक्षको तथा
विद्यार्थियो के लिए कार्यशालाओं का आयोजन ताकि अधिगम का अधिकाधिक प्रसार आसपास के विद्यालयो में हो पाए।
क्षेत्र की चुनौतियाँ: राष्ट्रीय पाठयचर्चा की रूपरेखा नीति 2005 विज्ञान विषय को एक प्रक्रिया / पूछताछ मूल्य प्रणाली के रूप में पढ़ाने की सिफारिश करती है। दर्भाग्यवश आज का विज्ञान शिक्षण शायद ही इस तरह के मुददों का संज्ञान लेता है। भारतीय विज्ञान शिक्षा के समक्ष् एक और चुनौती है- प्रयोग हेतु बुनियादी ढ़ांचे के साथ हाथों की गुणवत्ता और उपकरणों की कमी। भारत में विज्ञान शिक्षा हेतु शिक्षकों की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।
कार्यक्रम का विवरण: विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त कमियों को दूर करने के साथ-साथ विज्ञानशाला छात्रों में विज्ञान के प्रति ललक पैदा करती है ताकि कठिन सवालों का जवाब खोजने के साथ-साथ उनमें अन्वेषण शक्ति का विकास हो। मध्य तथा उच्च विद्ययालयो के विद्यार्थी में अनुभव जनित माध्यमों से विज्ञान के सिद्धांत की व्याख्या करके विज्ञान सीखने में सुगमता प्रदान करना विज्ञानशाला का उद्देश्य है। रटंत पद्धति से इतर विज्ञानशाला इस विषय के प्रति विद्यार्थियों में गहरी समझ व उत्साह पैदा करने की उम्मीद
करती है।
विज्ञानशाला परिवर्तन स्थित विज्ञान प्रयोगशाला के माधयम से सरलतापूर्वक वैज्ञानिक अन्वेष्ण शक्ति के विकास हेतु प्रतिबद्ध है। ज्ञान की साझी संस्कृति विकसित करने के उद्देश्य से विज्ञान कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना तथा आसपास के विद्यालयों को सीखने के उद्देश्य में शामिल करना हमारा लक्ष्य है।
विज्ञानशाला ‘परिवर्तन’ परिसर में वर्ग संचालन करती है तथा आसपास के मध्य व उच्च विद्यालयों में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा संचालित पाठयक्रमों के आधार पर वैज्ञानिक प्रयोगो को विकसित करती है। विज्ञानशाला का उद्देश्य छात्रों को ऐसा वातावरण उपलब्ध कराना है जहाँ वे नवाचार के साथ विज्ञान सीखें। आसार प्रयोगों द्वारा विद्यार्थीयों को वास्तविक दुनिया के साथ सैद्धातिक अवधारणाओं को सोचने, समझने की अनुमति देता है – विज्ञानशाला। पाठयक्रम (यदि उपलब्ध हो): परिवर्तन तथा विद्यालय हेतु पाठयक्रम 1 वर्ष का है जबकि सामुदायिक पाठयक्रम 6 महीने का । इन दोनो पाठयक्रमों में प्रकाश और उष्मा, गति, चाल, दाब, गुरूत्वाकर्षण का नियम, अम्ल, लवण धातु और अधातु, विद्युत, वायु तथा वायु दाब, ऊर्जा, ध्वनि जैसे महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया गया है। इसके अलावा जीवन की मूलभूत अवधारणाएं भी इसमें शामिल किया गया है। रटंत प्रवृति से अलग विज्ञान ‘करके सीखें’ प्रविधि अपनानपे पर केंद्रित है। छात्र यहां इन्ही प्रविधियों से सीखते है तथा वैज्ञानिक अवधारणाओं का विकास करते हैं। यहाँ के कुछ प्रयोग श्री अरविंद गुप्ता जैसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक की प्रेरणा से भी प्रेरित हैं।
कार्यशालाएं-
विभिन्न शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों और संगठनों के साथ सहयोग करके विज्ञानशाला ने समुदाय में छात्रों और शिक्षकों के लिए अनेक कार्यशालाएं और कार्यक्रम आयोजित की है। इसका प्रमुख उद्देश्य छात्रों को रोचक और नवीन प्रयोगों के माध्यम से विज्ञान सीखने का अवसर प्रदान करना है। डॉ जी. एस. रौतेला, श्री समर बागची, श्री तुषार कांति सेन गुप्ता तथा डा. संतोष कुमार कुछ ऐसे विशेषज्ञ है जिनके मार्गदर्शन में इस कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है। आसान तरीके से वैज्ञानिक सिद्धांतों को सीखाने हेतु श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र, पटना के विशेषज्ञों को भी हमने आमंत्रित किया। विज्ञान मेला में विद्यार्थीयों के मॉडल को देखना एक अलग वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करता है। 28 फरवरी की तरह ‘विज्ञान दिवस’ के अवसर
पर प्रस्तुति प्रतियोगिता का भी आयोजन यहाँ होता है।
केस स्टोरी
यह कहानी परिवर्तन विज्ञानशाला से जुड़े एक बच्चे का है। परिवर्तन विज्ञानशाला, जो परिवर्तन शिक्षा इकाई का एक सैद्धांतिक छोटा सा उपखंड है। यहाँ से जुड़कर बच्चे विज्ञान के सैद्धांतिक विन्दुओं पर प्रायोगिक समझ बनाते हैं साथ ही साथ विज्ञान के अन्य बारीकियों एवं गतिविधि से भी बच्चों को जोड़ा जाता है। इन सभी प्रक्रियाओं के द्वारा बच्चों में विज्ञान की मौलिक समझ को बढाया जाता है।
आज की कहानी में मैं ऐसे ही एक बच्चे का जिक्र कर रहा हूँ जो पिछले सत्र में पूरी शिद्दत एवं निरंतरता के साथ, तथा आज के बदली विषम परिस्थिति में भी विज्ञानशाला से जुड़कर अपनीं क्षमताओं का विकास कर रहा है । आज से लगभग एक साल पहले विज्ञानशाला में रिशु कुमार नाम के एक लड़के का जुड़ाव बना। मूलतः यह बच्चा इसके पहले भी परिवर्तन में झरोखा केंद्र से जुड़ा था, जहाँ पर यह कंप्यूटर के मदद से भाषा सिखने का कौशल प्राप्त कर रहा था। झरोखा कक्षा के दौरान ही इसकी ललक विज्ञानशाला की तरफ बनी। कंप्यूटर से भाषा सिखने के क्रम में ही यह कभी कभी विज्ञानशाला में भी आकर बैठता था तथा विज्ञान से जुड़े हुए बच्चे जब कोई मॉडल बनाते थे तो बड़े गौर से उन सब गतिविधियों को देखता था।
इस प्रकार रिशु कुमार का सर्वप्रथम विज्ञानशाला से नियमित छात्र के रूप में जुड़ाव अप्रैल 2019 से हुआ तब वह कक्षा आठ का छात्र था। आगे के कुछ वाक्यों में हम रिशु कुमार के परिचय ज्ञात करेंगें। रिशु के पिता जी का नाम सुजिर यादव है यह दो भाई एवं एक बहन हैं। संजलपुर गाँव से रहने वाला रिशु के गरीब परिवार का बच्चा है। इसके पापा गाँव में ही एक छोटे से ब्यवसाय करके अपने परिवार का भरण पोषण करतें हैं। रिशु गाँव के ही सरकारी उच्च विद्यालय में पढता है, जिसे उत्क्रमित उच्च विद्यालय संजलपुर के नाम से जानते हैं। परिवर्तन विज्ञानशाला किसी बच्चे से मुख्य रूप से एक वर्ष के लिए जुड़ाव स्थापित करता है। इस जुड़ाव के आरम्भ से अंत तक में यह प्रयास किया जाता है कि किस प्रकार बच्चों में विज्ञान के सैद्धांतिक समझ को विकसित कर उसकमें वैज्ञानिक सोच का सृजन किया जाये । इस प्रक्रिया में विज्ञान के पाठ्यक्रम से प्रायोगिक खंड को पूरा करते हुए, मॉडल निर्माण, विभिन्न प्रयोग परीक्षण, तार्किक समझ पर बनाए गए सवालों का निराकरण, हैंड्स ऑन एक्सपेरिमेंट एवं अन्य कई क्रियाकलाप पर काम किया जाता है। इस केस स्टोरी में भी मै रिशु के विज्ञानशाला से जुड़ने से लेकर अगले एक वर्ष तक में हुए बदलाव का जिक्र कर रहा हूँ । अप्रैल 2019 में जुड़ने के समय रिशु बेहद ही सरल व्यवहार का लड़का था जो बोलने चालने में बहुत ही सामान्य था। विज्ञान के किसी भी प्रश्न या फिर अपनी परिचय देने में भी उसे घबराहट होने लगती थी । अपनी कक्षा के स्तर के अनुकूल जानकारी की बात करें तो औसत दर्जे का कहा जा सकता है परन्तु न तो उसे अपनी बात कहने आती थी और न ही कह पाने का विश्वास था । इन दोनों बातों का प्रभाव इतना था की रिशु कुछ बोल नहीं पता था । विज्ञानशाला ने सबसे पहले इसके झिझक को तोड़ने के लिए अनेक गतिविधियों का सहारा लिया तथा बच्चों के समूह में मुख्य भूमिका उसके झिझक एवं डर को कम करने का प्रयास किया। इसके लिए समूह कार्य, अपने कार्य का प्रदर्शन, विषय ज्ञान, मॉडल निर्माण, एवं अपनी जबाबदेही को पूरा कर दूर करने का प्रयास किया गया । मॉडल निर्माण में वैसे भी रिशु का विशेष मन लगता था तो ज्यादातर मॉडल की प्रस्तुति भी बच्चों के भ्रम को दूर करने में कारगर सिद्ध होता था जो रिशु के मामले में भी हुआ । विज्ञान के सिद्धांतो से जुड़ने एवं उस पर समझ बनाने के लिए के लिए भी नियमित रूप से कक्षा में अनेक कार्य किये गए जैसे विज्ञान कार्यशाला, विज्ञान मेला, प्रश्नोतरी प्रतियोगिता, नियमित कक्षा संचालन । कुछ ही समय लगभग चार पाँच महीने बीतते बीतते रिशु अपनी बातों को अपने दोस्तों एवं कक्षा में अच्छे तरीके से रखने लगा । पर अभी भी अनेक कौशलों पर कार्य करना शेष रहा गया था । कुछ ही दिन बाद मैंने रिशु को विज्ञानशाला में अपनी कक्षा में मॉनिटर की जिम्मेदारी दे दी । यह जिम्मेदारी देने का मूल कारण था कि मै बाकि बच्चों की तरह रिशु को भी विज्ञानशाला के सभी यंत्रों, पार्ट्स तथा साजो सामान से परिचित एवं सक्रिय कर देना चाहता था। कुछ महीने में ही वह विज्ञानशाला के सभी वस्तुओं से अवगत हो गया । एक अच्छी बात मुझे यह लगी कि विज्ञानशाला द्वारा बताये गए पूरी जानकारियों को वह लिखकर बड़े अच्छे से रखा था जो उसे आगे भी बहुत दिनों तक काम आतीं रहेंगी। इन्ही सब क्रियाकलाप के दौरान अपने विषय के तमाम प्रायोगिक गतिविधयों से जुड़े प्रयोग जो विज्ञानशाला में बताया गया था उसे भी अपनी जेहन में याद करता गया। अब रिशु को जुड़े हुए लगभग 9 से 10 महीने हो गए थे । जनवरी का महीना आ गया था । मौजूदा सत्र लगभग समापन की ओर बढ़ चला था । रिशु अब अपनी कक्षा में गिने चुने बच्चों में से एक था और सर्फ यही तक नहीं अब वह अपनी बातों को इतनी सटीकता से कह पाता जो जो लगभग दो वर्ष से जुड़े बच्चे Page 46 of 1 कह पाते थे । विज्ञान विषय की जानकारियों की भी बात करें तो वह अच्छी खासी कही जा सकती है। इस बात को बल इससे भी मिलता है कि जब सत्र के समापन पर विज्ञानशाला प्रश्नोतरी प्रतियोगिता का आयोजन किया तो अन्य सभी बच्चे रिशु को अपने साथ रखना चाहते थे क्योंकि यह प्रतियोगिता मूलतः विज्ञान के प्रश्नों पर आधारित था । अंततः इस प्रतियोगिता में विजेता भी रिशु द्वारा लीड किये गए समूह ने ही किया।
इस प्रकार इस एक वर्ष के जुड़ाव के अनुभव के आधार पर रिशु में अनेक गुणों का विकास करते हुए पाया जिसमें उसके वैचारिक समझ , विज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष का ज्ञान , बेबाक तरीके से अपनी बात रखने की कौशल , विषय की समझ, नेतृत्व करने की क्षमता प्रमुखता से शामिल है। परिवर्तन विज्ञानशाला शिक्षा का एक सशक्त अनुभाग है। यहाँ शामिल होने से, बच्चे विज्ञान के सैद्धांतिक बिंदुओ, साथ ही साथ विज्ञान की अन्य बारीकियों और गतिविधियों पर व्यवहारिक समझ बनाते हैं। इन प्रक्रियाओं के माध्यम से बच्चों में विज्ञान की मूलभूत समझ को बढ़ाया जाता है। लगभग एक साल पहले, रिशु कुमार विज्ञानशाला में शामिल हुए। प्रारंभ में, वे ‘झरोखा’ केन्द्र से भी जुड़े थे, जहाँ वे कंप्यूटर की मदद से अंग्रेजी सीख रहे थे। इन कक्षाओं के दौरान, उन्होंने विज्ञान के प्रति रूचि विकसित की ।
झरोखा वर्गो के दौरान, उन्होंने कभी-कभी विज्ञानशाला में बैठकर बच्चों को विभिन्न गतिविधियों का प्रदर्शन करने और मॉडल बनाने के लिए तैयार किया। अप्रैल 2019 में, जब वे आठवीं कक्षा में थे, अधिकारिक तौर पर रिशु विज्ञानशाला के छात्र बन गए थे। रिशु के पिता का नाम सुजीर यादव है, उनके दो भाई और एक बहन हैं। उनके पिता गाँव मे ही एक छोटा सा व्यवसाय करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। रिशु गाँव के एक सरकारी हाई स्कूल में पढ़ता है। अप्रैल 2019 मे शामिल होने के समय, रिशु बोलने में औसत था। सवाल पूछने या अपना परिचय देने के दौरान वह घबरा जाता था। न तो वह अपनी बात ठीक से कह सकता था औार न ही वह इतना आश्वस्त था कि वह यह कह सके। इन दोनों बातों का प्रभाव यह था कि रिशु ज्यादा अपनी बातों को खुलकर व्यक्त नहीं कर पा रहा था और अपनी पढ़ाई में भी वह पिछड़ रहा था। विज्ञान विद्यालय ने उसकी झिझक को दूर करने तथा उसकी मदद करने के लिए कई गतिविधियों द्वारा कोशिश की। इसके लिए समूह कार्य, उसके कार्य का प्रदर्शन, विषय ज्ञान और मॉडल निर्माण का सहयोग लिया गया। मॉडल निर्माण में रिशु की विशेष रूचि थी, इसलिए अधिक मॉडलों की प्रस्तुति कारगर साबित हुई। विज्ञान के सिद्धांतो से जुड़ने और इसे समझने के लिए, कक्षा मे नियमित रूप से विज्ञान कार्यशालाओं, विज्ञान मेलों, प्रस्तुति, प्रतियोगिताओं और नियमित कक्षा संचालन जैसे कई कार्य किए गए हैं। लगभग चार महीने बाद, रिशु ने अपने शब्दों अपने दोस्तों और कक्षा मे अच्छे तरीके से रखा लेकिन कई कौशलों पर काम होना अब भी बाकी था।
कुछ दिनों बाद मैंने रिशु को अपनी कक्षा की निगरानी की जिम्मेदारी दी। इस जिम्मेदारी को उसे सौंपने का मूल कारण यह था कि बाकि बच्चे की तरह विज्ञान विद्यालय के सभी उपकरणों, से रिशु को परिचित कराकर उसे मैं सक्रिय बनाना चाहत था। कुछ ही महीनों मे उन्हें विज्ञानशाला की सभी वस्तुओं के बारे में पता चला गया। एक और अच्छी बात मुझे यह महसूस हुई कि रिशु ने वर्ग के दौरान साझा की गई सभी जानकारी को बड़े करीने से रिकॉर्ड किया, जिससे उन्हें अपने भविष्य की कक्षाओं में मदद मिलेगी। इन सभी गतिविधियों के दौरान, रिशु ने विज्ञान की सभी व्यावहारिक गतिविधियों से संबंधित सभी प्रयोगों को याद किया।
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रिशु अब लगभग 9 से 10 महीने के लिए विज्ञानशाला से जुड़ा हुआ था और जनवरी का महीना आ गया। वर्तमान सत्र समाप्ति की ओर बढ़ गया था और रिशु अब अपनी कक्षा के उन गिने-चुने बच्चे में से एक था, जो अपनी बात सटीकता के साथ कह सकते थे। विज्ञान के ज्ञान में भी सुधार हुआ था। जब सत्र के समापन पर विज्ञानशाला क्विज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, तो बाकी सभी बच्चे रिशु को अपनी टीम में रखना चाहते थे। क्योंकि यह प्रतियगियता मूल रूप से विज्ञान के सवालो पर आधारित थी। अंत में इस प्रतियोगिता में विजेता भी रिशु के नेतृत्व वाले समूह ही रहे।
इस प्रकार, विज्ञानशाला के साथ अपनी एक साल की यात्रा तय करने के बाद, रिशु ने अपनी वैचारिक समझ, विज्ञान अवधारणाओं का ज्ञान, बोलने के कौशल और नेतृत्व कौशल जैसे कई गुणों को विकसित किया।
कार्यक्षेत्र का उद्देश्य:
पारस्परिक संवाद सत्रों के माध्यम से बच्चों में पढ़ने की आदत डालना। क्षेत्र की चुनौतियाँ : एक शोध संस्थान, स्कोलास्टिक पब्लिशिंग हाउस और ‘यू गॉव’ द्वारा किए गए ‘किड्स
एंड फैमिली रीडिंग रिपोर्ट’ सर्वेक्षण से मिली जानकारी के अनुसार केवल 32 प्रतिशत बच्चे सलाना 24 किताबें पढ़ते हैं। हालांकि कई माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अधिक पढ़े, निष्कर्ष ने स्कूल जाने वाले बच्चों की पुस्तक नहीं पढ़ने की आदतों का पता लगाया। हालांकि सरकार बच्चों में पढ़ने की आदतों को बढ़ाने के लिए विभिन्न पहल कर रही है, लेकिन डेटा पूरी तरह से एक अलग तस्वीर दिखाती है, खासकर ग्रामीण भारत के बच्चे इस क्षेत्र में पिछडे़ हैं। प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट (एएसईआर) 2017 के अनुसार, ग्रामीण बच्चों के लिए सीखने के परिणामों को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रही एक गैर-लाभकारी संस्था ने पाया कि 14 से 18 वर्ष की आयु के लगभग 25 प्रतिशत ग्रामीण युवा अपनी भाषा में नहीं पढ़ सकते हैं। यह आँकड़ा दर्शाता है कि कई बच्चे भारतीय शिक्षा प्रणाली की रवैये पिछड़ रहे हैं। स्कूल के बुनियादी ढाँचे में समस्याओं और महत्वपूर्ण सुविधाओं की कमी के अलावा
उनकी अपनी भाषा में पढ़ने की अक्षमता कल्पना और उनके विचारों को एक साथ रखने का अवसर छीन लेती है।
कार्यक्रम का विवरण :
एसडीजी, लाइब्रेरी पर बल देने के उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित करते हुए समुदाय के विभिन्न सदस्यो के बीच पढ़ने की आदतों को बढ़ाने के उद्देश्य से परिवर्तन की यह पहल सराहनीय है।
लाइब्रेरी में सभी उम्र के पाठकों के लिए हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं की किताबें उपलब्ध हैं। हमारी लाइब्रेरी में विभिन्न शैलियों की 4000 पुस्तकें और एकलव्य प्रकाशन, नेशनल बुक ट्रस्ट, तक्षशिला पब्लिकेशन, चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट और कई प्रकाशनों की पुस्तकें शामिल हैं। हमारे पुस्तकालय में पत्रिकाओं का एक विशाल संग्रह है। हर महीने, समुदाय के सदस्यों को कई किताबें पढ़ने हेतु निर्गत की जाती है। इन सदस्यों में शिक्षक, माता-पिता, छात्र और अन्य पाठक शामिल हैं। लाइब्रेरी में एक रीडिंग कॉर्नर है जहाँ बच्चे आराम से बैठ सकते हैं और अपनी पसंद की किताबें पढ़ने का आनंद ले सकते हैं।
पाठ्यक्रम: यह पुस्तकालय ‘परिवर्तन’ और स्कूलों में गतिविधि आधारित कक्षाएँ भी संचालित करता है। एक प्रसिद्व लेखिका सुश्री वंदना राग की मदद से, परिवर्तन ने इन बच्चों के लिए एक गतिविधि आधारित पाठ्यक्रम विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित करती हैं और उन्हें अपने अनुभवों के आधार पर अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। कार्यशालाएँ: बडे़ पैमाने पर समुदाय के सदस्यों में पढ़ने के प्रति जागरूकता लाने के लिए, लाइब्रेरी ने एक और पहल की है, जिसे ‘गुलक पिटारा’ के नाम से जाना जाता है। ‘गुलक पिटारा’ किताबों का संग्रह है जो बच्चों की किताबें उचित और रियायती कीमतों पर उपलब्ध करती हैं। इन किताबों को समुदाय और स्कूलों में ले जाया जाता है, एक स्टाल पर प्रदर्शित किया जाता है और समुदाय में बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों को जुटाने में मदद करता है और उन्हें ‘परिर्वतन’ के बारे में जानकारी देता है। इस पहल के माध्यम से हम समुदाय के सदस्यों को पुस्तकkलय से जोड़ने का प्रयास करते हैं। को हर किसी के लिए ‘परिवर्तन’ के प्रमुख कार्यक्रमों जैसे नारी जुटान, किसान मेला और अन्य कार्यक्रमों में उपलब्ध कराया जाता है ।
केस स्टोरी
नाम –अनुज कुमार श्रीवास्तव
उम्र – 14 वर्ष
कक्षा -7
स्कूल नाम – vkj ds मोडल स्कूल
ग्राम – खेम भटकन
अनुज कुमार परिवर्तन पुस्तकालय का नियमित पाठक रहा है| बच्चों का परिवर्तन पुस्तकालय में नियमित आना होता है|इनको पहले दिन देखा तो लगा कि ये बच्चा कुछ दिनों तक बहुत ही शांत रहता था। कम बोलता,बहुत ही डरे–डरे से रहता था, कुछ बोलने में संकोच करता था । लेकिन आज वह बिना डरे हुए आकर अखबार पढ़ता है। इसके बाद अपनी रूचि के हिसाब से किताब निकालकर ध्यान को एकाग्रचित कर पढ़ता है। पढने के बाद उससे पढ़ाई को लेकर बातचीत होती तो उस बातचीत से यह बात निकलकर कर आई कि वह बच्चा काफी उत्सुकता के साथ पुस्तकालय में आता है। अनुज कुमार ने बताया कि यहाँ आने से मुझे किताब पढने का अभ्यास हो गया, समय का भी सदुपयोग होता है। खेल से जुड़ी बातचीत हुई तो वह बताया कि क्रिकेट काफी अच्छा लगता है। अनुज बहुत ही सरल स्वभाव का लड़का है| क्लास में सभी बच्चों के साथ मिल जुल कर रहता है, और पुस्तकालय में आकर विभिन्न किताबों से अवगत होकर काफी खुशी महसुस करता है, शुरू से आज तक के क्लास से उसमे विभिन्न प्रकार के परिवर्तन दिखने को मिली। आज भी अनुज कुमार पुस्तकालय से जुड़कर ऑनलाइन क्लास में शामिल होकर अपनी पढ़ाई जारी रखे है। परिवर्तन पुस्तकालय से जुड़ने के बाद उनके अभिभावक से मिलने पर यह पता चला कि उसके अभिभावक भी खुश रहते हैं।